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स्कूल

मनुष्य अपने जीवन में कुछ-न-कुछ सीखता है। कोई भी मनुष्य जन्म से ही ज्ञानी नहीं होता है बल्कि इस धरती पर आकर ही किसी भी विषय पर ज्ञान प्राप्त करता है। मानव जीवन को सभ्य बनाने में सबसे बड़ा योगदान स्कूल का होता है। स्कूल का अर्थ होता है जिस स्थान पर ज्ञान का वास हो। मैं भी शिक्षा ग्रहण करने के लिए सेंचुरी स्कूल में जाता हूँ। मेरे स्कूल में सभी जाति, धर्म और वर्ग के बच्चे पढने आते हैं। स्कूल शासकीय और अशासकीय दोनों प्रकार के होते हैं। हमारा स्कूल एक मंदिर के समान है जहाँ हम रोज पढने आते है ताकि अपने जीवन में उज्ज्वल भविष्य प्राप्त कर सके। हमारे स्कूल में सभी को एक समान दर्जा दिया जाता है। हमें प्रतिदिन स्कूल जाना बहुत ही अच्छा लगता है क्योंकि स्कूल एक ऐसा स्थान है जहाँ पर हमें प्रतिदिन कुछ-न-कुछ नया सीखने को मिलता है। सही शिक्षा से ही किसी भी बच्चे का भविष्य निश्चित होता है और सही शिक्षा की शुरुवात स्कूल से ही होती है।

Ganesh Khunnu
Principal

शिक्षक और अध्यापक में क्या अंतर है

अध्यापक, विद्यार्थियों को अध्यापन कराता है। यानी जो शाश्वत है। जो विद्यमान हैं। जो स्थापित है। उसके बारे में जानकारी देता है। जैसे हमारे सौरमंडल में नौ ग्रह हैं। सबके नाम क्या है। भारत को स्वतंत्रता कब मिली। संविधान कब बना। निबंध लिखना। कथाओं को पढ़ना और उनके चरित्र को याद करना। इत्यादि सब कुछ ऐसा जो पहले से स्थापित है। उसके बारे में जानकारी देना। एक अध्यापक पदोन्नति के बाद शिक्षक बनता है। शिक्षक का काम होता है सही और गलत के बारे में बताना। शिक्षा देना। अध्ययन करना और शिक्षा प्राप्त करना, दोनों बिल्कुल अलग हैं। बिना अध्ययन के शिक्षा प्राप्त नहीं की जा सकती परंतु बिना शिक्षा के अध्ययन किसी काम का नहीं। शिक्षक, विद्यार्थियों की जिज्ञासा शांत करते हैं। उनके प्रश्नों का उत्तर देते हैं। ऐसे प्रश्नों का उत्तर भी लेते हैं जो पुस्तक में उपलब्ध नहीं है।